सोशल मीडियाः अभिव्यक्ति के नए चौनल
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Abstract
1947 में भारत को आजादी मिली थी। देश के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के उपरान्त मिला था, किन्तु कुछ साल पहले तक अभिव्यक्ति के लिए मंच के अभाव और साधन की कमी के कारण अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के प्रयोग का अवसर सीमित एवं दुर्लभ था। जनता अभिव्यक्ति करे तो कहाँ करे ! जायें तो जायें कहां? आम आदमी का यह अधिकार यह स्वतंत्रता धरा का धरा रह जाता था। जनता की आवाज, जनता की रूचि, जनता का मत जनता की समस्या आदि के प्रकटीकरण की कोई सहज सुलभ मंच न था। टीवी, रेडियो और अखबार जनता के पहुँच से बाहर थे तो जनता की पहुंच टीवी, रेडियों और अखबार से दूर थी। जनता प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो थी नहीं कि वह रेडियों पर आए और अखबार में छपे ! उसकी आवाज तो दूसरे लोग, दूसरे संचार माध्यम (पत्र-पत्रिकाएं आदि) उठाते थे। सीधे अपनी बात जनता कह नहीं पाती थी। अभिव्यक्ति की बलवती इच्छा के बावजूद आम आदमी की अभिव्यक्ति अपना दम तोड़ रही थी। अभिव्यक्ति की पीड़ा, कराह में लोकतंत्र आधा अधूरा था। अवसर और मंच के अभाव मंे आजादी का कोई मोल न था। कहीं दूर से कोई आवाज आती भी थी तो आम आदमी की आवाज, आम आदमी की अभिव्यक्ति नक्कार खाने में तूती की तरह दब कर रह जाती थी। न कोई उसे सुनता था और न कोई उस पर ध्यान देता था। जो देश और जनता की दुर्गति का बहुत बड़ा कारण सिद्ध हुआ। जनता की आवाज ऊपर या बाहर तक नहीं पहुँचने के कारण गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूखमरी, अपराध, भ्रष्टाचार या अन्य समस्याओं का अंबार लग गया। जनता निष्क्रिय और मूकदर्शन बनकर यूं ही बैठी रही। किन्तु जनता को अभिव्यक्ति की वास्तविक आजादी दिलाने का काम किया आज के सोशल मीडिया नेटवर्क ने। सोशल मीडिया ने संचित अभिव्यक्ति का द्वार खोलकर, अभिव्यक्ति का लोकमंच प्रदान कर, अभिव्यक्ति के नए चौनल खोलकर भारत के आन्तरिक लोकतन्त्र को मजबूत करने को कार्य किया। सोशल मीडिया ने नेटवर्क ने हर उपयोगकर्ता (यूजर्स) को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है। हर व्यक्ति को पत्रकार या कलम का सिपाही बना दिया है। हृदय के बंद कपाट खुलते ही, अभिव्यक्ति का मंच मिलते ही अभिव्यक्ति की ऐसी वेगवती धारा प्रवाहित होने लगी कि आज इसके प्रवाह से कोई भी अछूता नहीं रहता चाहता है। आज सोशल मीडिया का प्रभाव ऐसा हो गया है कि मुंबई के सुदूर कस्बे में भी अपने कमरे में बैठी एक लड़की कोई बात कहती है तो उस आवाज की गूंज सत्ता के गलियारे तक सुनाई पड़ती है, कानून हरकत में आ जाता है, लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। राजनीतिक में ववंडर खड़ा हो जाता है। सोशल मीडिया नेटवर्क अभिव्यक्ति का ऐसा सर्वसुलभ, सहज, त्वरित अभिव्यक्ति के संचार का माध्यम बनकर उभरा है कि विभिन्न नेटवकों ने जुड़े अर्थात सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यम बनकर उभरा है कि विभिन्न नेटवकों ने जुड़े अर्थात् माध्यम बनकर उभरा है कि विभिन्न नेटवकों ने जुड़े अर्थात् सोशल मीडिया के विभिन्न उपकरणों, चौनलों और साधनों का उपयोग करनेवालों की संख्या नब्बे के दशक के लाखों से कहीं बढ़कर 21 वीं शताब्दी के प्रथम दशक में अरबांे तब पहुँच चुकी है। और दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ रही है। सोशल मीडिया ने ऐसे जगत का, ऐसे देश का ताना बाना बुनकर निर्माण किया है जिस देश की नागरिकता ग्रहण करने के लिए कोई पासपोर्ट, वीसा की जरूरत नहीं है। जरूरत है सिर्फ एक इन्टरनेट कनेक्शन की। यह एक ऐसा देश है जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है। यह एक ऐसा देश है जिसकी आबादी (यूजर्स) एक अरब के पार होकर चीन और भारत की आबादी के बाद तीसरे नम्बर पर है। अभिव्यक्ति के नए चैनल के माध्यम से सोशल मीडिया सामाजिक नेटवर्किग वेबसाइटों जैसे-फेसबुक, ट्विटर, लिंकर, वाट्स-अप, यू-ट्यूब, लिंक्डइन, पिटरे स्े ट, माइस्पेस, साउंडक्लाइड और ऐसे ही न जाने कितने साइटों पर प्रयोगकर्ताआंे को त्वरित गति से, इस्टेंटली सहज-सुलभ रूप से विचार-विमर्श, सृजन, पसंद, ना पसंद, सहयोग करने, जनमत तैयार करने, अभियान चलाने, लामबंदी करने जागरूकता फैलाने तथा टेक्स्ट, इमेज, ऑडियों और वीडियों रूपों में जानकारी मंे हिस्सेदारी के करने और उसे परिष्कृत करने की योग्यता और सुविधा प्रदान करता है। बल्कि सच तो यह है कि सोशल मीडिया ने ‘इन्टरनेट का लोकतंत्रीकरण’ किया है और लोकतंत्र को जनता की पारस्परिक सहभागिता के माध्यम से मजबूत करने का कार्य किया है। टीवी, रेडियों, अखबार आदि के मूक दर्शक और पाठकांे को निष्क्रिय या पैसिव की श्रेणी से बाहर निकालकर उसे एक्टिव और इंटरएक्टिव बनाया है। सोशल मीडिया ने एक ऐसे क्रियाशील मंचों को तैयार किया जै जिसके माध्यम से व्यक्ति और समुदाय प्रयोक्ता-जनित सामग्री का संप्रेषण एवं सह-सृजन कर सकते हैं, लेखक बन सकते हैं। अब तो आज के आम आदमी को अपनी आवाज पहुंचाने के लिए न तो किसी अखबार के संपादकांे के चक्कर लगाना है और न ही टीवी एवं रेडियों पर दिखने-सुनने के लिए एप्रोच या कनेक्शन भिड़ाना है। बल्कि वह तो घर बैठे ही, चलते-फिड़ते भी, जहाँ कहीं होते हुए भी अपनी बात रख सकता है, अपनी आवाज बुलंद कर सकता है और ऐसा सम्भव हुआ सोशल मीडिया के आसान उपलब्धता के कारण। फेसबुक, ट्विटर आदि अभिव्यक्ति के नए चौनल भर नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति के नए द्वार हैं, अभिव्यक्ति के मुक्ति-मार्ग हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के एक्सरसाइज का एक खुला लोकमंच है और देश के आन्तरिक लोकतंत्र को मजबूत करने का एक सामाजिक औजार है। सोशल मीडिया सब का और सब के लिए है। इसकी प्रकृति समावेशी (इनक्लूसिव) है, जिसकी परिधि से कोई भी बाहर या अछूता नहीं है। तकनीकि एकजुटता और समावेशी व्यवहार के कारण यह सामाजिक अस्पृश्यता, ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब, जाति, वर्ग, रंग धर्म नस्ल, क्षेत्रीयता आदि के दीवारांे को गिराकर एक साथ एक ही मंच पर खड़े होने का एक कॉमन प्लेटफार्म प्रदान करता है। इस अर्थ में सोशल मीडिया की एवं बड़ी सामाजिक और मानवीय भूमिका है। जहाँ सभी को समान स्वतंत्रता, समान सुविधा और समान अधिकार उपलब्ध है। जहाँ सभी अपने विचारों को रख सकते है विचारों को साझा कर सकते हैं, किसी भी सामग्री का इस्तेमाल कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। यह संगठनों, व्यक्तियों और समुदायों के बीच संचार एवं सम्वाद मंे महत्वपूर्ण और व्यापक परिवर्तनों को अंजाम देता है। सोशल मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पारस्परिकता ने डिजिटल स्पेस में विस्फोट ला दिया है। अपने सामाजिक जगत में अभिव्यक्ति के स्पेस से वंचित आम आदमी का साइबरस्पेस में स्थान मिलना, उसके अस्तित्व के सत्यापन के एहसास को पाना एक अद्भुत और नई बात है। अतएव यह एक अद्भुत माध्यम है। विशेषकर ‘फेसबुक’ ने आम आदमी को अपनी आत्म-अभिव्यक्ति का एक यह पुस्तक नायाब माध्यम प्रदान किया है जहाँ वह अपनी छोटी-से-छोटी बात को रख सकता है, शेयर कर सकता, खुद को दूसरों से और दूसरे से खुद को जोडकर एक-दूसरे के साथ लगाव, जुड़ाव, तनाव, बहलाव-फुसलाव और चाव को रख सकता है। परस्पर मानव संपर्क का यह नया रूप लोगों को बहुत रास आ रहा है। लोगों को एक-दूसरे के पास ला रहा है। एक ‘कॉमन अड्डा’ पर आकर प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समूह का अपने विचार, अनुभव, फोटो आदि का साझा करना अभिव्यक्ति का डिजिटलाइजेसन है। अभिव्यक्ति का एक नवीन फार्म है, इंटरएक्टिव माध्यम है। वर्ल्डवाइड वेब पर स्थिर और निष्क्रिय पृष्ठों को देखने के बजाय अधिक परस्पर क्रियाशील बनकर ऑन लाइन या वास्तविक समुदायों में प्रयोक्ता जनित सामग्री का इस्तेमाल कर गतिशील और सक्रिय इस्तेमालकर्ता होने का अनुभव ही कुछ अलग है। रेडियों और टीवी पर लोगों की कमेंट्री सुननेवाला आम आदमी अब पहली बार खुद अपने कमेंट्स लोगों को देता है और लोग उसे सुनते हैं, उसे महत्व दते े हैं, उसका फॉलोअर बनते हैं। एक कॉमन मैन का भी कोई फॉलोअर हो सकता है, देखा जाए तो एक जमाने में और आज भी एक अकल्पनीय बात एवं अचंभित कर देने वाला एहसास है। यही है सोशल मीडिया की जादू का ताकत जो सबके सिर पर चढ़कर बोलता है। सोशल मीडिया द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति के नए चौनलों ने बदलते हुए आधुनिक तकनीकि समाज के परस्पर आपसी सम्बन्धों, आपसी व्यवहारों और तौर-तरीकांे मंे आए बदलाव को हवा दी है। बदलते समाज की बनती नयी तस्वीर में रंग भरने का कार्य किया है। इसके माध्यम से लोगों के बदलने नये मिजाज, नये अंदाज के दर्शन किए जा सकते है। सोशल मीडिया के कारण लोगों के पारस्परिक सम्बन्ध और सम्वाद करने के स्टाइल में तेजी से बदलाव दिख रहा है। इससे सम्वाद का सामाजिक दायरा, राजनीतिक दायरा बढ़ रहा है। सामाजिक रूप से करे लोगांे को तकनीक के माध्यम से सोशल मीडिया के द्वारा लोगों से जुडने का अनुभव साझा करने का अवसर मिलता है। व्यस्तताओं के बीच जब भी फुरसत मिले कोई भी विचार व्यक्ति आनलाइन आकर लोगों से कनेक्ट कर सकता है, सूचना और विचारांे का आदान-प्रदान कर सकता है, ट्वीट कर सकता है, ब्लॉग लिख सकता है, फेसबुक क्रिकेट पर जन्मदिन-सालगिरह की पार्टी की तस्वीर पोस्ट कर सकता है, अपने खट्टे-मीठे अनुभव को साक्षा कर सकता है। अपनी थकान मिटाने के लिए यू-ट्यूब से गाने डाउनलोड कर मनचाहे संगीत का आनन्द ले सकता है। सोशल मीडिया की युवा अभिव्यक्ति ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया है। क्या बच्चे, क्या महिलाएं, क्या पुरूष, क्या बड़े, क्या वृद्ध इन सबकी जिन्दगी में सोशल मीडिया ने अपना घर बनाया है। इनके भीतर के अकेलेपन, खालीपन, ऊबाऊपन, अवकाश, उदास, अवसाद आदि के क्षणांे का साथी बनकर जीवन के खाली कैनवस में रंग भरने का, रोमांच लाने का, रोमांस लाने का नवीनता प्रदान करने का कार्य किया है। बोरिंग जिन्दगी में एक्साइटमेंट पैदा करने का काम किया है। विशेषकर युवा वर्ग की सक्रिय उपस्थिति और भागीदारी ने सोशल मीडिया को युवा बनाकर इसे युवाओं का मनपसंद अड्डा बना दिया है जहाँ इन इस्तेमालकर्त्ताओं में अधिकतम युवा (84 प्रतिशत) और कॉलेज जाने वाले विद्यार्थी (82 प्रतिशत) हैं।