व्यक्ति की अभिव्यक्ति
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Abstract
व्यक्ति का व्यक्त रूप अभिव्यक्ति है। अभिव्यक्ति ही मनुष्य को मनुष्य से व्यक्ति बनाता है। अभिव्यक्ति व्यति के अस्तित्व का प्रमाण है, चिंतन का प्रमाण है कि व्यक्ति सोचता-समझता है, विचार रखता है। किसी चीज पर अपनी राय रखने से व्यक्ति की पहचान बनती है, व्यक्तित्व निर्मित होता है, व्यक्तित्व निर्मित होता है। तब यहां सहज ही प्रश्न उठता है कि व्यक्ति कौन है? क्या पुरुष व्यक्ति है? क्या स्त्री व्यक्ति है? क्या दोनों व्यक्ति हैं? या सिर्फ पुरुष व्यक्ति है? या सिर्फ स्त्री व्यक्ति है? या सिर्फ और सिर्फ पुरुष व्यक्ति है, स्त्री व्यक्ति नहीं है। सारी बीमारी की जड़ स्त्री होने और पुरुष होने के अंतर में है। इसी स्त्री और पुरुष के अंतर से सारे आधुनिक विमर्श अस्तित्वादी विमर्श, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श इत्यादि पैदा हाते े हैं।
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